वो यादें बड़ी अज़ीज़ सी - a poem


वो यादें बड़ी अज़ीज़ सी

जब हम पतंग उड़ाया करते थे


दो पहिया साइकिल के पीछे

पतंग लगाए, रेस लगाया करते थे


दौड़ते भागते एक दूजे की पतंग काटते

जब थक जाया करते थे 


रंग बिरंगी पतंगों को हाथ में लिए

फिर खूब ठहाके लगाते थे


इस मस्ती और सैर सपाटे में

भूख जब लग आती थी


तब निकलते थे घाट घाट का पानी पीने

सबकी मम्मीयां खूब तिल लड्डू खिलाती थीं


वो यादें बड़ी अज़ीज़ सी 

जब हम पतंग उड़ाया करते थे


रंग बिरंगी पतंगे आसमां में

खूब लहराया करते थे . . . 


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