दिन हफ्ते गुज़र रहे हैं और
हम अब भी रो रहे हैं,
अब तक शांत क्यूं हैं वो
क्या कानों में जू भी न रेंगती
हम जागते रहे दिन रात
वह लेते रहे चैन की श्वांस,
क्यूं बीच मँझधार छोड़ हमें
हमारे आशियाने में ही रहने लगे
शर्म, हया सब ताक पर रख दी
इज़्ज़त का भी कोई मोल नहीं,
पैसे और ताकत की चाह में
हमारी जिंदगी को क्यूं बेच चले?
Umdaa..
ReplyDeleteDhanyawad 🙏🏽
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