मज़हब नही सिखाता आपस मे बैर करना - a poem


पैसा कमाना है, नाम बनाना है
अच्छा कुछ आता नही, 
चलो दुश्मनी बनाएं ।

मज़हब के नाम पर,
दुनिया को लड़ाएं ।।

पर धर्म मज़हब नहीं सिखाते, बैर करना
रंजिशें न होती खुद से,
यह भी हम ही बनाते।

न हम सुनते न वो,
जीते हैं हुकुम बाज़ी के लिए,
दूरियां मिटाने नहीं, बढ़ाने के लिए ।।

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