बादल की मनमानी (baadal ki manmani)



बादल की अपनी मनमानी सी है
कहीं गरजता और कहीं बरस्ता है


गरजने से कड़कड़ाहट गूंज उठती है
आंखें कभी चौंधिया भी जाती हैं


खुश तो होता है मन
पर खूब बरसे तो मुश्किलें भी आ जाती हैं


दोष किसको दें अपनी ही नादानी है
कहीं सूखा तो कहीं पानी से तबाही है।



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